एक जिन्दगी काफी नहीं
by kuldeep Nayar
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- Publish date: 2016
- Publisher: Rajkamal Prakashan; 4th edition
- Original Title: Ek Jindagi Kafi Nahi
- ISBN: 978-8126723386, 8126723386
- Language: Hindi
किताब की शुरुआत के साथ ही दुविधा में पड़ गयी - कलम के सिपाही पर कैसे कलम चलाई जाए । निर्बाध गति से पुस्तक को पढ़ना चाहती हूँ, चूंकि पाठकों के प्रति प्रतिबद्ध हूँ अतः तत्समय विचार लेखन जारी रहेगा। पुस्तक में सन १९४७ के आसपास के परिदृश्यों का उल्लेख इतना लम्बा लगा जैसे किसी डोसियर को पढ़ रहे हैं। पढ़ते वक़्त ख्याल आया कि यदि बंटवारा नहीं हुआ होता तो हमारी प्राथमिकताएं कुछ अलग होती । रक्षा बजट इतना भरी भरकम न होकर शिक्षा व स्वास्थय पर खर्च होता। शायद। १५ अगस्त स्वतंत्रता दिवस चुनने के पीछे की कथा आज पता चली। द्वितीय युद्ध में जापानी सेना का मित्र सेनाओ के सामने आत्मसमर्पण को यादगार बनाते हुए माउंटबेटन ने भारतीयों के सामने ब्रिटेन के आत्मसमर्पण का यही दिन चुना। कुलदीप अपने जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी \"बँटवारे \" की जड़ खोजते पाए गए। आज तक पढ़े के उलट \" अम्बेडकर ने सबसे ज्यादा एतराज अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षण को लेकर किया था , जिसे वे \"बैसाखियाँ \" मानते थे। \" सियासत के खेल तब भी मौजूद थे \" मुझे इस तरह प्रचार करने के लिए कहा गया की दोनों राज्यों के लोग एक भाषा के बजाय दो भाषाओँ वाले राज्य की संभावना से बहुत उत्साहित थे \".... \" \"राजा को निर्दोष सिद्ध करवाने के लिए उन्हें अपने पिता की बहुत मिन्नतें करनी पड़ी। \" भारत की आज़ादी और इसके आस पास के समय को पढ़कर लगता है जैसे तब एक समस्या को जैसे तैसे ढकते तो दूसरी समस्या उभर आती। वर्तमान तो सर्वथा उलट है जैसे समस्याएं पैदा की जा रही है। प्रशासन , पुरस्कार की अंदरूनी सलवटे पलटते हुए \" डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने एक नाम जोड़ दिया .... जब वे हैदराबाद से विजयवाड़ा जाने के लिए मोटर में यात्रा करते समय बीमार हो गए थे तो इसी नर्स ने उनका इलाज किया था। \" \" प्रशिक्षण के दौरान जो ऊँचे सिद्धांत. पैदा किये जाते हैं ...... जिस दिन कमिश्नर आपको फ़ोन करके ऊपर भेजने के लिए पैसे इकट्ठे करने को कहता है , उसी दिन से आपका मोहभंग होना शुरू हो जाता है।\" इतिहास पुरुषों से परिचय \" शास्त्री की सादगी और विनम्रता उतनी ही लुभावनी थी जितनी की पंत की सूझबूझ और परिपक्वता.\" आश्चर्यचकित हूँ कि बात बेबात हल्ला मचाने वाले पुस्तक में उल्लेखित नेताओं के परिवारवालों ने इस पर प्रतिबन्ध लगाने की बात नहीं की !!!!! नैयर ने घटनाओं , पात्रों को छुआ भर है बहुत गहराई से जानकारी नहीं दी है। कारण शायद इतने लम्बे काल को कवर करना हो सकता है। सरकारें तब भी झूठ बोलती थी । शास्त्री के \"....... कमरे में कोई घंटी नहीं थी। इस चूक को लेकर जब संसद में सरकार पर हमला किया गया था तो सरकार साफ़ झूठ बोल गयी थी। “ संबंधों की सड़क उच्चतम पदों को स्पष्ट सी करती हुई \"....... कांग्रेस अध्यक्ष कामराज..... उनके दुभाषिये आर. वेंकटरमन .....\" \" शंकरदयाल शर्मा , जिन्हे बाद में .... \" \" एक स्थानीय वफादार वकील ..... बाद में..... मुख्य न्यायाधीश .... \" भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश की घटनाओं को पढ़ते वक़्त यही लगा की वे किसी व्यक्ति विशेष के निर्णय है , ना कि किसी निश्चित योजना से संचालित हो रहे हैं। भाषा सहज है। बेहतरीन अनुवाद मानो कुलदीप स्वयं अपनी बात कह रहे हों। राजनीति के क्षेत्र में बौद्धिक जुगाली करने वालों के लिए, भारतीय राजनीतिक गलियारों की उत्तम रिपोर्टिंग।
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