Bhago nahi Dunia ko badlo
by Rahul Sankrityayan
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- Publisher: Kitaab Mahal publisher
- ISBN: 8122501176
- Language: hindi
प्राक्कथन , पुस्तक का कथानक - सभी एक नई व पृथक सोच के साथ । कार्ल मार्क्स व देहात की समझ के बीच सामंजस्य बिठाना साधारण काम नहीं। देहाती पात्रों के माध्यम से सम्पूर्ण कथा । "जोंक"(मौकापरस्त राजनीतिज्ञ ) व "कमरा"(कामगार ) के इर्द गिर्द। पर बात पत्ते की। मरकस बाबा , इस्तालिन बीर , लेनिन महात्मा अपनी ही तरह के नामकरण। सांकृत्यायन स्वतंत्र सोच के धनी रहे हैं जिसका आधार साहस रहा है। यायावरी ने शायद उन्हें साहसी बना दिया है। लेखक की कल्पना सर्वोपरि रहती है , लिखते वक़्त यदि वह ‘रीडरशिप’ का विचार करे तो शायद वह लिख ही नहीं पाए। देसी बोली के साथ एक भोलापन लिए हुए संवाद के रूप में देश विदेश की तात्कालिक , सामाजिक , आर्थिक समस्याओं पर विचार किया गया है। पुस्तक की गति अच्छी है -एक समस्या से दूसरी व दूसरी से तीसरी स्वतः जुडी नज़र आती है। शुरू शुरू में बोझिल लेकिन बाद में रुचिकर। समस्याएं नई नहीं है , प्रस्तुतीकरण नया है। स्थानीय /बोलचाल के शब्दों का भरपूर प्रयोग। जाँगरचोर ,बिख ,औतार ,जांगर , किमखाब आदि आदि। लेखक के अनुभव की लेखनी से निकले उदगार " ....... जीवन बहुत प्रिय है , नरक वाले भी जीवन को छोड़ना न चाहते होंगे " सत्य प्रतीत होते हैं। सांकृत्यायन कहीं भी न भूले कि उच्चारण देहाती ही काम में लेना है -" इसकूल, सुतंत भारत, सोसित " अंग्रेजी शब्दों के देसीकरण पर मुस्कुराये बगैर नहीं रह पाते -"इकम टिकस "(इन्कमटैक्स ) , “फर्बरबलाकि” (फारवर्डबलाक)I अर्थशास्त्र , साम्यवाद , सोवियत , बोल्शेविक क्रान्ति को सहज वार्तालाप द्वारा समझाना ही सांकृत्यायन का उद्देशय रहा है। जिसमे वे सफल रहे हैं। शायद इसी वजह से उन्होंने शीर्षक भागो नहीं दुनिया को बदलो रखा हैI
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