कोरोना पॉजिटिव के संपर्क में आने पर ज़ेहन में अनायास ही आया कि अगर दफ्तर को मेरी श्रद्धांजलि सभा आयोजित करनी पड़े तो दृश्य कैसा होगा । शायद कुछ इस तरह का होगा – “मैडम का फोटो चाहिए श्रद्धांजलि सभा में रखने के लिए, फूलमाला चढाने के लिए” किसी ने कहा । इस आह्वान के साथ तो सब असमंजस में पड़ गए , दफ्तर में अफरा तफ़री मच गयी। अब फोटो कहाँ से लाये। दफ्तरों में तो विदाई समारोह के अलावा किसी अन्य समारोह का रिवाज़ ही नहीं। फिर चाहे विदाई नौकरी से हो चाहे संसार से ।
अगर फोटो मिलेगी भी तो वह होगी किसी सेवानिवृति आयोजन का ग्रुप फोटो। सब दुविधाग्रस्त हो गए कि पूरे समूह को नाहक ही फूल चढ़ाना ठीक नहीं रहेगा। जो दुनिया में मौजूद हैं वे बुरा मान सकते हैं।
किसी ने कहा रिकॉर्ड में कहीं तो होगी फोटो वहीँ से निकाल लो एक बार, बाद में पुनः चिपका देना। खंगालने पर पता चला उसमे से तो वह कब की फिसल चुकी। वहां चेप के निशान जरूर है। फिर याद आया आजकल रिकॉर्ड ऑनलाइन किया जा रहा वहां जरूर मिल जाएगी। जल्दी से ऑनलाइन रिकॉर्ड सहेजने वाले को ढूंढा गया। उसने गर्व से बताया कि ऑनलाइन रिकॉर्ड भरने की अंतिम तारीख चूँकि आगे खिसका दी गयी है अतः उसने वहां कुछ भरना शुरू ही नहीं किया । फोटो अपलोड तो सबसे अंत में होता।
बहरहाल किसी ने यह कहते हुए फोटो का किस्सा ख़त्म किया कि कागजी तस्वीर से क्या होता है उनकी छवि तो हमारे दिलो दिमाग़ में है। (लब्बोलुआब हम उसी से काम चला लेंगे। )
अब आयी फूलों की बारी। सोचा गया निश्चित स्थल पर श्रद्धा स्वरुप पुष्प चढ़ा दिए जायेंगे। पर फूल लाये जाएँ या माला। फिर कोनसी किस्म के। और इस मौसम में कोनसे मिलेंगे। सभा के लिए तय समय नज़दीक जान कर फूल और माला को टाल देना उचित समझा गया । ”छोड़ो फूल-वूल। मैडम तो खुद ही सरल थी उन्हें ये तामझाम पसंद नहीं आते।“
सभा में जब बोलने का समय हुआ – “मैडम ने आपके साथ अधिक समय तक काम किया था तो चंद शब्द आप कहें।“
“अरे नहीं नहीं स्थानांतरण के बाद तो आपके ऑफिस में थी आप कहे उनके बारें में।“
इतने में किसी तीसरे ने सलाह दी चलो छोड़ो वो ज्यादा बोलती भी नहीं थी अतः दो मिनट का मौन रख लेते है।
सभा समाप्त।