जब योगाभ्यास का मन बनाया तब सोचा था कि योग किसी देशी प्रशिक्षक से या देश में ही सीखूंगी क्योंकि इसकी उत्पत्ति यहीं की मानी जाती है। पर मन में एक आशंका भी थी कि भले ही योग देशज है किन्तु विदेशी ने निश्चित तौर पर इसे पूरे मन / तरीक़े से सीखा होगा। और यह आशंका निर्मूल नहीं थी । बारबरा पिजन लामा द्वारा लिखे जा रहे एक ब्लॉग के आधार पर यह अवधारणा बनी कि विदेशी देश की विधाओं /ज्ञान को किसी देशी के बनिस्पद अधिक गहराई से सीखते हैं।
लाभ तो सब जगहों से जानने को मिल गए होंगे, यहाँ कुछ अनुभव भी साझा करते है। योग एक यात्रा है।जिस तरह यात्रा में उत्साह . उतार-चढ़ाव , पड़ाव आते हैं उसी तरह योग में भी। आप सिर्फ और सिर्फ स्वयं के साथ होते हैं। ऊब शब्द का इससे कोई ताल्लुक़ नहीं क्योंकि कहा जाता है इसमें 84 लाख अर्थात जितनी जीव की योनियां हैं उतने आसन है। जहां तक सीखने / करने की इच्छा है वहाँ तक चलते चले।
योग से जुड़े हुए एक लम्बा अरसा हुआ। प्रथम बार जब सूर्य नमस्कार का नाम सुना तो लगा शायद सूर्य को नमस्कार करने की कोई विधि होती है। शुरू में इतना अच्छा महसूस न हुआ जितना अब होता है शायद कुछ अच्छे प्रशिक्षकों की वजह से। किसी विशेषज्ञ से सीखना योग से जुड़े रहने में मददगार साबित हो सकता है ।
एक के बाद एक आसन करते चले जाएँ पता ही नहीं चलेगा कि कब कितना समय गुजर गया ।कई बार हम जब तक प्रयोग /अनुभव नहीं करते नहीं है तब तक अहसास ही नहीं होता कि हमें काम पसंद है। एक मित्र से रोज़ पूछती कि कैसा लगा तब एक दिन सुझाव दिया कि करके देखो तब जाना इसके आनंद के बारे में । योग के प्रचार में किसी प्रेरणास्रोत का नहीं होना या फिर ग़ैर व्यवसायिक नज़रिया बाधा रहा है ।
नानी कहा करती थी ज़्यादा नहाने और कम खाने पर कभी पछताना नहीं पड़ता उसी की कड़ी में मुझे लगता है योगाधिक्य भी कभी पश्चाताप का विषय नहीं बन सकता।
योग श्वास द्वारा मन व शरीर को जोड़ना। योग में एक कहावत है कि आपकी उम्र उतनी है जितनी आपकी रीढ़ में लचीलापन । उम्र की संख्या में इज़ाफ़ा होता है किन्तु शरीर का वृद्ध होना धीमा हो जाता है / ऊर्जा में वृद्धि महसूस होती है । दैनिक जीवन में अंगों का अधिकतम उपयोग कर पाते हैं । यौगिक क्रियाओं को तसल्ली से करने का जीवन पर असर के लिए एक किवदंती है कि श्वान जल्दी जल्दी साँस लेकर सिर्फ़ 15-16 साल जीता है जबकि कछुआ धीरे धीरे साँस लेकर क़रीब 300 साल जीता है।
कहते है कि योग का शिखर होगा कि अवचेतन में योग क्रिया कर रहे हैं और यथार्थ में सेहत को उस ‘अघटित’ से लाभ भी हो रहा है।
यात्रा जारी है।